Om Shanti
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कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो            सोच के बोलो, समझ के बोलो, सत्य बोलो            स्वमान में रहो, सम्मान दो             निमित्त बनो, निर्मान बनो, निर्मल बोलो             निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी बनो      शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ करो, शुभ संकल्प रखो          न दुःख दो , न दुःख लो          शुक्रिया बाबा शुक्रिया, आपका लाख लाख पद्मगुना शुक्रिया !!! 

क्या रावण के दस सिर थे, रावण किसका प्रतीक है ?


क्या रावण के दस सिर  थेरावण किसका प्रतीक है  ?
भारत के लोग प्रतिवर्ष रावण का बुत जलाते है I उनका काफी विश्वास है की एक दस सिर वाला रावण श्रीलंका का रजा थावह एक बहुत बड़ा राक्षस था और उसने श्री सीता का अपहरण  किया  था I वे यह  भी  मानते  है की रावण बहुत बड़ा विद्वान  था इसलिए  वे  उसके  हाथ  में  वेद,  शास्त्र  इत्यादि   दिखाते  है I साथ  ही  वे  उसके  शीश पर    गधे का सिर भी दिखाते है I जिसका अर्थ वे यह लेते है की वह हठी ओर मतिहीन था लेकिन अब परमपिता परमात्मा शिव ने समझाया है की रावण कोई दस शीश वाला राक्षस ( मनुष्य) नही था बल्कि रावण का पुतला वास्तव में बुरे का प्रतीक है रावण के दस सिर पुरुष और स्त्री के पांच-पांच विकारो को प्रकट करते है I और उसकी तुलना एक ऐसे समाज का प्रतिरूप है जो इस प्रकार के विकारी स्त्री-पुरुष का बना हो इस समाज के लोग बहुत ग्रन्थ और शास्त्र पड़े  हुए तथा विज्ञानं में उच्च शिक्षा प्राप्त भी हो सकते है लेकिन वे हिंसा और अन्य विकारो के वशीभूत होते है I इस तरह उनकी विद्वता उन पर बोझ मात्र होती है I वे उद्दंड  बन गए होते है I और भलाई की बातो के लिए उनके कान बंद हो गए होते है I " रावण " शब्द का अर्थ ही है - जो दुसरो को रुलाने वाला है I अत: यह बुरे कर्मो का प्रतीक हैक्योंकि बुरे कर्म ही तो मनुष्य के जीवन में दुःख व् आंसू लाते है  अतएव  सीता के अपहरण का भाव वास्तव में आत्माओ की शुद्ध भावनाओ ही के अपहरण का सूचक है I इसी प्रकार कुम्भकरण आलस्य का तथा " मेघनाथ" कटु वचनों का प्रतीक है और यह सारा संसार ही एक महाद्वीप है अथवा मनुष्य  का मन ही लंका है I 
इस विचार से हम कह सकते है की इस विश्व में द्वापरयुग और कलियुग में ( अर्थात २५०० वर्षो) " रावण राज्य" होता है क्योंकि इन दो युगों में लोग माया या विकारो के वशीभूत होते है उस समय अनेक पूजा पाठ करने  तथा शास्त्र पढने के बाद भी मनुष्य विकारीअधर्मी   बन जाते  है रोग ,शोक ,  अशांति  और दुःख का सर्वत्र   बोल  बाला  होता है I मनुष्यों   का खानपान  असुरो जैसा ( मांस,मदिरातामसी भोजन  आदि) बन जाता है वे कामक्रोधलोभमोहअहंकारईर्ष्याद्वेष आदि विकारो के वशीभूत होकर एक दुसरे को दुःख देते और रुलाते रहते है I ठीक   इसके विपरीत स्वर्ण युग और रजत युग में राम-राज्य थाक्योंकि परमपिताजिन्हें की रमणीक अथवा  सुखदाता होने के कारण " राम" भी कहते हैने उस पवित्रताशांति और सुख संपन्न देसी स्वराज्य की पुन: स्थापना की थी उस राम राज्य के बारे में प्रसिद्द है की तब शहद और दूध की नदिया बहती थी और शेर तथा गाय एक ही घाट पर पानी पीते थे I
अब वर्तमान  में मनुष्यात्माये फिर से माया अर्थात रावण के प्रभाव में है औध्योगिक उन्नतिप्रचुर धन-धन्य और सांसारिक सुख - सभी साधन होते हुए भी मनुष्य  को सच्चे सुख शांति की प्राप्ति नहीं है I घर-घर में कलह कलेश  लड़ाई-झगडा और दुःख अशांति है तथा मिलावटअधर्म और असत्यता का ही राज्य है तभी तो ऐसे " रावण राज्य" कहते है I
अब परमात्मा शिव गीता में दिए अपने वचन के अनुसार सहज ज्ञान और राजयोग की शिक्षा दे रहे है और मनुष्यात्माओ  के मनोविकारो को ख़त्म करके उनमे देवी गुण धारण करा रहे है ( वे पुन: विश्व में बापू-गाँधी के स्वप्नों के राम राज्य की स्थापना करा रहे है I ) अत: हम सबको सत्य धर्म और निर्विकारी मार्ग अपनाते हुए परमात्मा के इस महान कार्य में सहयोगी बनना   चाहिए I
कलियुग अभी बच्चा नहीं है बल्कि बुढ़ा हो गया है 
इसका विनाश निकट है और शीघ्र ही सतयुग आने वाला है |
आज बहुत से लोग कहते है , " कलियुग अभी बच्चा है अभी तो इसके लाखो वर्ष और रहते है शस्त्रों के अनुसार अभी तो सृष्टि के महाविनाश में बहुत काल रहता है | "
परन्तु अब परमपिता परमात्मा कहते है की अब तो कलियुग बुढ़ा हो चूका है अब तो सृष्टि के महाविनाश की घडी निकट आ पहुंची है अब सभी देख भी रहे है की यह मनुष्य सृष्टि काम,क्रोध,लोभ,मोह तथा अहंकार की चिता पर जल रही हैसृष्टि के महाविनाश के लिए एटम बमहाइड्रोजन बम तथा मुसल भी बन चुके है अतअब भी यदि कोई कहता है कि महाविनाश दूर हैतो वह घोर अज्ञान में है और कुम्भकर्णी निंद्रा में सोया हुआ है,वह अपना अकल्याण कर रहा है अब जबकि परमपिता परमात्मा शिव अवतरित होकर ज्ञान अमृत पिला रहे हैतो वे लोग उनसे वंचित है | 
आज तो वैज्ञानिक एवं विद्याओं के विशेषज्ञ भी कहते है कि जनसँख्या जिस तीव्र गति से बढ रही हैअन्न की उपज इस अनुपात से नहीं बढ रही है इसलिए वे अत्यंत भयंकर अकाल के परिणामस्वरूप महाविनाश कि घोषणा करते है पुनश्चवातावरण प्रदुषण तथा पेट्रोलकोयला इत्यादि शक्ति स्त्रोतों के कुछ वर्षो में ख़त्म हो जाने कि घोषणा भी वैज्ञानिक कर रहे है अन्य लोग पृथ्वी के ठन्डे होते जाने होने के कारण हिम-पात कि बात बता रहे है आज केवल रूस और अमेरिका के पास ही लाखो तन बमों जितने आणविक शस्त्र है इसके अतिरिक्तआज का जीवन ऐसा विकारी एवं तनावपूर्ण हो गया है कि अभी करोडो वर्ष तक कलियुग को मन्ना तो इन सभी बातो की ओर आंखे मूंदना ही है परन्तु सभी को याद रहे कि परमात्मा अधर्म के महाविनाश से ही देवी धर्म की पुनसथापना भी कराते है | 
अतसभी को मालूम होना चाहिए कि अब परमप्रिय परमपिता परमात्मा शिव सतयुगी पावन एवं देवी सृष्टि कि पुनस्थापना करा रहे है वे मनुष्य को देवता अथवा पतितो को पावन बना रहे है अत:अब उन द्वारा सहज राजयोग तथा ज्ञानयह अनमोल विद्या सीखकर जीवन को पावनसतोप्रधन देवी,तथा आन्नदमय बनाने का सर्वोत्तम पुरुषार्थ करना चाहिए जो लोग यह समझ बैठे है कि अभी तो कलियुग में लाखो वर्ष शेष हैवे अपने ही सौभाग्य को लौटा रहे है!
अब कलियुगी सृष्टि अंतिम श्वास ले रही हैयह मृत्यु-शैया पर है यह कामक्रोध लोभमोह और अहंकार रोगों द्वारा पीड़ित है अतइस सृष्टि की आयु अरबो वर्ष मानना भूल है और कलियुग को अब बच्चा मानकर अज्ञान-निंद्रा में सोने वाले लीग "कुम्भकरणहै जो मनुष्य इस ईश्वरीय सन्देश को एक कण से सुनकर दुसरे कण से निकल देते है उन्ही के कान ऐसे कुम्भ के समान हैक्योंकि कुम्भ बुद्धि-हीन होता है|

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